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सर्कस में हाथी को रस्सी से बांधकर रखते हैं। यह ऐसी रस्सी होती है जिसे हाथी आसानी से एक झटके में तोड़ सकता है। हाथी बलशाली होता है और जरा सी ताकत लगाने पर वह रस्सी के छोटे से टुकड़े को तोड़ सकता है, पर क्या कारण होता है कि हाथी एक छोटी सी रस्सी को नहीं तोड़ पाता और बंधन मुक्त नहीं हो पाता। दरअसल हाथी को बचपन से ही मोटी रस्सी से बाँध कर रखा जाता है और उसे इस बात का एहसास करवाया जाता है कि मोटी रस्सी वह तोड़ नहीं सकता। उम्र बढ़ने के बाद भी हाथी के दिमाग में यही बात स्थायी रूप से बैठ जाती है कि अगर पैर में रस्सी है तब वह एक बंधन में है, जो टूट ही नहीं सकता। हाथी ताउम्र रस्सी को बंधन का पर्याय मान लेता है। ऐसा बंधन जो बस एक झटके से टूट सकता है। अगर असफलता की बात करें तब मनुष्य का स्वभाव रहता है कि वह असफलता को पैर में बंधी रस्सी की तरह मान लेता है। वह फिर से असफलता प्राप्त क्षेत्र मेें जाने से डरता है। उसे असफलता से इतना डर लगने लगता है कि वह उसे बंधन मानने लगता है। और प्रयत्न करने से भी डरने लगता है। और, इस डर का मनोविज्ञान इतना खतरनाक होता है कि व्यकित साधारण कार्य करने से भी डरने लगता है। और बात उसके आत्मविश्वास में कमी से लेकर व्यकितत्व में कमियों तक पहुँच जाती है। हाथी कभी भी इस बंधन से मुक्त नहीं हो पाता, इस कारण हर दम रस्सी में बंधा रहता है जबकि हम अपनी असफलता को भूलकर नर्इ पहल करने में सक्षम हैं बावजूद इसके कर्इ युवा साथी अपनी असफलता को लम्बे समय तक साथ में लेकर चलते रहते हैं। इस कारण वे कुछ नया नहीं सोच पाते क्योंकि उन्हें हरदम यही बात सताती रहती है कि कहीं पुन: असफल न हो जाए। दरअसल असफलता को क्षणिक माना जाना चाहिए और इस बंधन से जितना जल्दी हो मुक्त हो जाना चाहिए। असफलता से छूटकर अगर आप प्रयत्न का दामन थामेंगे तब निशिचत रूप से एक ताजी हवा के झोंके जैसा एहसास होगा और नर्इ राह पर चलने के लिए नए प्रयत्न कर पाएंगे। असफलता कोर्इ अभिशाप तो नहीं, यह प्रयत्न करने का फल है और फल कड़वा भी हो सकता है, पर हर बार फल कड़वा ही होगा, यह मानकर आप फल खाना ही त्याग देंगे ? प्रयत्न करें और मेहनत के साथ प्रयत्न करें तब आप देखेंगे कि सफलता को आपके पास आना ही पड़ेगा।